कपड़ा कारोबारी अशोक रंधावा पिछले 35 साल से दिल्ली के सरोजनी नगर में दुकान चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि साल 2005 में उन्होंने मौत को आंखो से देखा है। 2005 में जब सरोजनी नगर मार्केट में सीरियल ब्लास्ट हुआ था तब वह मार्केट में ही थे। ब्लास्ट में उनके कई जानने वाले मारे गए थे। लाशों को उन्होंने अपने कंधो पर उठाई है। इस घटना के बाद से उन्होंने सोच लिया था कि वह अपनी यह नई ज़िंदगी लोगों की सेवा करते हुए ही बिताएंगे। उस धमाके में मारे गए लोगों के परिजनों की अशोक आज भी मदद करते हैं।
उन्होंने कहा कि जब ब्लास्ट हुआ तो वह पुलिस चौकी की ओर जा रहे थे। तभी उन्हें अपने पीछे से बहुत तेज धमाके की आवाज़ आयी। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो चीख पुकार सुनाई दी और तड़पते हुए दिखाई दिए। उन्होंने बताया कि 2008 और 2011 में भी दिल्ली में धमाके हुए थे। NGO के जरिए अशोक आज भी मारे गए लोगों के परिजनों के संपर्क में है। और उनकी सहायता भी करते हैं।
पिछले साल लॉकडाउन में उन्होंने काफी ऐसे लोगों को फ्री में खाना बांटा जो दूसरों के भरोसे ही ज़िंदा है। उन लोगों के पास घर नहीं है। अगर उन्हें राशन दे दो तब भी उन लोगों के पास रोटी पकाने के लिए चूल्हा नहीं है। पिछले साल दो महीनों तक जब सख्त लॉकडाउन था, तब भी वह रोज 500 लोगों को फ्री में खाना बांटते थे।
अशोक और उनकी पत्नी अपने घर में ही खाना बनाते थे। खाने में वेज बिरयानी और छोले चावल होता था। रोज घर से बाहर आने जाने के कारण अशोक और उनकी पत्नी कोरोना संक्रमित हो गए। ठीक होने के बाद उन्होंने नेकी का यह काम फिर से जारी रखा। रोजाना लगभग 500 लोगों को खाना बांटने से उनकी आर्थिक स्थिति थोड़ी खराब हो गई थी। जिसके कारण उन्होंने अपने दोस्तों से भी राशन की मदद ली। लेकिन इस साल के लॉकडाउन में अभी तक उन्हें ऐसी नौबत नहीं आयी है। लॉकडाउन खुलने तक उनका यह अभियान जारी रहेगा।