सुरक्षा बलों को लाइन ऑफ कंट्रोल पर और कश्मीर घाटी के अंदर आतंकियों से अलग-अलग तरीके से निपटना होता है क्योंकि दोनों जगह के हालात अलग हैं। जवानों को यहां हर जगह स्ट्रक ओर सावधान रहना पड़ता है।अलग अलग जगह के लिए अलग तरह से अपने आप को बदलना पड़ता है। दोनों जगह के लिए रूल ऑफ इंगेजमेंट भी अलग है। आपको बता दे तैनाती से पहले आर्मी के हर ऑफिसर और जवान को प्री-इंडक्शन ट्रेनिंग दी जाती है। यह होती है कोर बैटल स्कूल में।
कोर बैटल स्कूल का आदर्श वाक्य है- ‘वी ट्रेन टू विन’ यानी हम जीतने के लिए ट्रेनिंग देते हैं। Core Battle School जम्मू के पास नगरोट स्थित 16वीं कोर यानी वाइट नाइट कोर का एक बेहद ही महत्वपूर्ण ट्रेनिंग सेंटर है।16वीं कोर के अंतर्गत आने वाले अखनूर, राजौरी, सुंदरबनी, नौसेरा, मेंढर, कृष्णा घाटी से लेकर पूंछ तक जितने भी सैनिक एलओसी या फिर हिंटरलैंड में तैनात होते हैं उनकी पहले यहां ट्रेनिंग होती है।यह भी पड़े: Garhwal Rifles: देश सेवा की कसम खाकर भारतीय सेना में शामिल हुए 176 जवान
यहां आईईडी ब्लास्ट से लेकर घुसपैठ रोकने और आतंकियों को ढेर करने की ट्रेनिंग जाती है। यहां पर वे सैनिक आते हैं जो पहले से ही सेना का हिस्सा होते हैं, इसलिए सैनिकों को 14 दिन की एलओसी-ट्रेनिंग दी जाती है। इन 14 दिनों में आईईडी (IED) ट्रेनिंग के अलावा आतंकियों की घुसपैठ रोकने की ट्रेनिंग दी जाती है। यहां सैनिकों को सिर्फ शारीरिक तौर पर ही नहीं, बल्कि मानसिक तौर पर भी तैयार किया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक, सीबीएस (Core Battle School) में हर साल 29-30 हजार सैनिकों को ट्रेनिंग दी जाती है।यह ट्रेनिंग सेंटर जवानों के लिए बहुत मुख्य भूमिका निभाता है, क्यूंकि यह घुसपैठ,आतंकी हमलों और जवानों को अलग अलग जगह किस तरह से ढलकर अपने देश की सेवा करना है यह सिखाता है।