आपको बता दें की आजकल कुछ दिनो से सोशल मीडिया पर उत्तराखंड मांगे भू कानून को लेकर बहुत सारे अपडेट नजर आ रहे हैं। बता दें कि उत्तराखंड में भू कानून लागू करने की मांग लगातार उठाई जा रही है। सोशल मीडिया के जरिए सभी लोग भू कानून की मांग कर रहे हैं, और इस विषय पर राज्य सरकार पर जल्द ही कोई फैसला लेने का दबाव डाला जा रहा है। जानकारी मिली है की, एक रिपोर्ट के मुताबिक जब उत्तराखंड राज्य बना था, उसके बाद साल 2002 तक अन्य राज्यों के लोग उत्तराखंड में सिर्फ 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे। उसके कुछ सालों बाद 2007 में यह सीमा 250 वर्गमीटर की गई और फिर 6 अक्टूबर 2018 में सरकार द्वारा नया अध्यादेश लाया गया, जिसके मुताबिक उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 में संसोधन का विधेयक पारित किया गया और इसमें धारा 143 (क) धारा 154(2) जोड़ी गई थी, इसका मतलब है कि पहाड़ो में भूमि खारदीने की अधिकतम सीमा ही समाप्त कर दी गई थी।
वहीं, अगर हम हिमाचल प्रदेश की बात करे तो यहां के नियम उत्तराखंड से अलग हैं। सन् 1972 में हिमाचल में एक सख्त कानून बनाया गया, जिसमे बाहर के लोग हिमाचल में जमीन नहीं खरीद सकते थे। ऐसा इसलिए ताकिहिमाचल के लोग बाहरी लोगो को अपनी जमीन न बेच दें। और अगर वो अपनी जमीन बाहरी लोगों को दे देते तो भूमिहीन हो जाते, और वो फिर अपनी संस्कृति और सभ्यता को भी खो देते। वहीं, हिमाचल के लिए 2007 में धूमल सरकार ने धारा 118 में संशोधन किया और कहा कि बाहरी राज्य का कोई भी व्यक्ति, जो हिमाचल में 15 साल से रह रहा है, वो ही यहां पर जमीन लेने का योग्य रहेगा, फिर बाद में हिमाचल में अगली सरकार ने इसे बढ़ा कर 30 साल कर दिया था। वहीं, आपको बता दें कि हिमाचल के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ यसवंत सिंह परमार इस कानून को लेकर आए थे। ALSO READ THIS:युवाओं के लिए भर्ती का सुनहरा अवसर, स्टाफ नर्स और के 494 पदों पर भर्ती, जानिए किस जिले में कितने पद…
लैंड रिफॉर्म एक्ट 1972 में प्रावधान के तहत एक्ट के 11वे अध्याय में (control on transfer of lands) में धारा -118 के तहत हिमाचल में कृषि भूमि नही खरीदी जा सकती। वहीं, इस मामले को देखते हुए कोई भी गैर हिमाचली नागरिक को यहां जमीन खरीदने की इजाजत नही है। और अगर किसी भी नागरिक को कमर्शियल पर्पज के लिए जमीन चाहिए तो वह जमीन को किराए पर ले सकता है लेकिन खरीद नहीं सकता। इसलिए उत्तराखंड के लोग भी अब भू कानून की मांग कर रहे हैं, अब देखना ये होगा कि सरकार कब तक इस पर फैसला लेती है। हमे खुद भी पता है कि बहुत से बाहर के आए हुए लोग उत्तराखंड में बस गए हैं। कुछ लोग बाहर के लोगों को ज्यादा पैसों को चक्कर में अपनी जमीन बेच देते हैं, फिर बाहरी लोग यहां आकर बस जाते हैं। एक ये भी कारण है पहाड़ों में पलायन का। अपने लोग बाहर जा रहे हैं और दूसरे बाहरी लोगों को उत्तराखंड में चंद पैसों के लिए जमीन बेच दे रहे हैं।
साल 2000 के एक रिपोर्ट के आकडों पर नजर डालें तो उत्तराखण्ड की कुल 8,31,227 हेक्टेयर कृषि भूमि 8,55,980 परिवारों के नाम दर्ज थी। वहीं, इनमें 5 एकड़ से 10 एकड़, 10 एकड़ से 25 एकड़ और 25 एकड़ से उपर की तीनों श्रेणियों की जोतों की संख्या 1,08,863 थी। और इन 1,08,863 परिवारों के नाम 4,02,22 हेक्टेयर कृषि भूमि दर्ज थी, मतलब राज्य की कुल कृषि भूमि का लगभग आधा हिस्सा। बाकी 5 एकड़ से कम जोत वाले 7,47,117 परिवारों के नाम मात्र 4,28,803 हेक्टेयर भूमि दर्ज थी l और इससे पता चलता है कि किस तरह राज्य के लगभग 12 फीसदी किसान परिवारों के कब्जे में राज्य की आधी कृषि भूमि है। इसलिए अब सोशल मीडिया पर भू कानून के लिए मांगे की जा रही है। ALSO READ THIS:उत्तराखंड: शहीद मनदीप सिंह के घर पहुंचे सीएम, इकलौते बेटे के पार्थिव शरीर को देखकर मां के छलके आंसू…