आज हम बात करेंगे उत्तराखंड के तोता घाटी के बारे में। इंजीनियरों के लिए चुनौती बनी यह घाटी, वाहन चालकों के लिए भी किसी बुरे सपने से कम नहीं है। देवप्रयाग, रूद्रप्रयाग, श्रीनगर, और चमोली जाने वाले वाहनों को इसी घाटी से होकर गुजरना पड़ता है लेकिन यह उनके लिए खतरे से खाली नहीं होता। यह सब तो जानते हैं कि इस घाटी में अक्सर लोगों को परेशान किया है। आज हम आपको इसके दूसरे पहलू के बारे में बताने जा रहे हैं कि आखिर इस घाटी का नाम तोताघाटी कैसे पड़ा।
तोताघाटी में पहली बार जिस व्यक्ति ने सड़क बनाने का साहस दिखाया था उनका नाम ठेकेदार तोता सिंह रांगड। तोता सिंह प्रताप नगर के रहने वाले थे। यहां चट्टान काटने के लिए उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी खर्च कर दी थी, पत्नी के जेवर तक बेच दिए थे। उनकी इस जीवटता से खुश होकर टिहरी रियासत के तत्कालीन राजा नरेंद्र शाह ने घाटी का नाम तोताघाटी रखने के आदेश दिए थे। इस समय घाटी में ऑल वेदर रोड का काम चल रहा है। महीने तक पसीना बहाने के बाद एनएच यहां जैसे-तैसे हाईवे खोल पाया है। जिस तोता घाटी के विशाल चट्टानों के सामने मशीन भी फेल हो गई, उसे ठेकेदार तोता सिंह ने 90 साल पहले सिर्फ सब्बल और रस्सियों की मदद से चुनौती देने का साहस दिखाया।
तोता सिंह के पोते मेहरबान सिंह रांगड़ बताते हैं कि उनके दादा को टीवी के राजा ने 50 चांदी के सिक्के देकर रोड काटने को कहा था। जिसके बाद उन्होंने 50 ग्रामीणों को साथ लेकर चट्टान काटने के लिए निकल गए। इस काम में लगभग 70 हजार चांदी के सिक्के खर्च हुए। साल 1931 में काम शुरू हुआ। ALSO READ THIS:दहेज में कार नहीं मिली तो ससुराल वालों ने बहू को बेरहमी से पीटा, घर से निकाला, मायके वालों के साथ भी की मारपीट….
1935 में जब सड़क बनकर तैयार हो गई तो दादा ने राजा से कहा कि उन्हें इस काम में भारी नुकसान हुआ है। इस पर राजा नरेंद्र शाह ने उनके दादा को न सिर्फ जमीन दान दी थी, बल्कि सड़क का नाम भी उनके नाम पर रख दिया था। राजा ने उनके दादा को लाड साहब की उपाधि दी थी। तोता सिंह के स्वजनों का कहना है कि तोताघाटी में तोता सिंह की प्रतिमा लगाई जानी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी को सड़क निर्माण में उनके योगदान के बारे में पता चल सके।
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