प्रदेश की पहाड़ियों में शहीद हुए सचिन शर्मा की मां को क्या पता था कि जिस बेटे से वह 1 दिन पहले कुशलक्षेम पूछ रही थी दूसरे ही दिन उस मां को बेटे की शहादत की खबर मिलेगी। सचिन शर्मा ने शहादत से 1 दिन पहले घर फोन कर कहा था मां इस बार घर जल्दी नहीं लौट पाऊंगा सीमा पर तनाव बढ़ रहा है दुश्मन ने दुस्साहस करने की कोशिश करी तो खत्म कर ही लौटूंगा। सावित्री देवी ने बताया कि उन्होंने कहा सचिन तू कितना दुबला हो गया है कुछ खा पी लिया कर तो सचिन ने कहा मां मैं दुश्मनों के लिए दुबला ही बहुत हूं। और यह कहते-कहते सचिन की मां बेहोश हो गई। हरियाणा के पानीपत में सनौली के गांव गोयला खुर्द निवासी सैनिक सचिन शर्मा का 18 जनवरी 2018 को उनके गांव में राजकीय सम्मान के बाद अंतिम संस्कार किया गया। वहां उमड़ी भीड़ ने नम आंखों से शहीद को आखिरी विदाई दी।
उन को सलामी देने के लिए सेना के जवान और अधिकारी भी मौजूद थे। सचिन शर्मा के छोटे भाई साहिल ने उनकी चिता को अग्नि अर्पण की। और साहिल में अपने बड़े भाई की तरह सेना में भर्ती होने की प्रण लिया। जाट रेजीमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल कमल सिंह ने बताया कि सचिन की खेलों में रुचि थी। वह राजपुताना राइफल बटालियन की कबड्डी टीम का प्रमुख खिलाड़ी था और स्टार रेडर भी था। सचिन शर्मा अपनी ड्यूटी के प्रति चुस्त और इमानदार था। सचिन के पिताजी उसे बार-बार शादी के लिए कहते लेकिन सचिन की तरफ से उन्हें एक ही जवाब मिलता कि पहले छोटे भाई साहिल और बहन अंजू को पढ़ा लिखा दूँ और अगर आपने अब मेरी शादी करवा दी और मैं शहीद हो गया तो आप पर बहू की जिम्मेदारी भी बढ़ जाएगी। सचिन 15 जनवरी 2018 को अरुणाचल प्रदेश में शहीद हो गए थे। और उसके सारे अरमान धरे के धरे रह गए। फिर 17 जनवरी की शाम 6:00 बजे करीब सेना ने उनके पार्थिव शरीर को उनके गांव पहुंचाया।
आपको बता दें कि नवंबर 2016 में सचिन झज्जर में हुए ओपन आर्मी भर्ती में सेलेक्ट हुए थे। और उन्होंने 13 दिसंबर 2016 में यूपी में ट्रेनिंग शुरू की थी। अक्टूबर में ट्रेनिंग पूरी कर 15 दिन की छुट्टियां था। नवंबर में उसकी पहली पोस्टिक अरुणाचल प्रदेश में हुई। फरवरी में 15 दिन की छुट्टी मंजूर होने के बाद वह अपने घर आया। उसने अपना एटीएम अपने पिताजी को सौंप दिया और कहा कि मैं ऐसी जगह ड्यूटी पर जा रहा हूं जहां मुझे पैसों की बिल्कुल भी जरूरत नहीं पड़ेगी। सचिन के दोस्त मोहिता शर्मा ने बताया कि एक दौर ऐसा था जहां उसके बाद रनिंग करने के लिए जूते तक नहीं होते थे, उसे बचपन से ही फौजी बनने का शौक था। और उन्होंने कहा कि वह सड़क की बजाय यमुना नदी के अंदर रेतीली भूमि में दौड़ा और रेस की प्रैक्टिस की। वह मेहनत कर दो साल में ही सेना में भर्ती हो गया।
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