10 हजार रुपए से सुरु करी थी नमक की कंपनी, और अब 9 करोड़ रुपए पहुची मार्केट वैल्यू, पढ़िए संघर्ष की कहानी…

दोस्तों पहाड़ों से पलायन लगातार जारी है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पलायन को रोकने के लिए बेतोड़ मेहनत कर रहे हैं

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Harshit shedev Self employment at uttrakhand and now Harshit is earning millions
source-Dainik bhaskar

दोस्तों पहाड़ों से पलायन लगातार जारी है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पलायन को रोकने के लिए बेतोड़ मेहनत कर रहे हैं। जी हां दोस्तों यह लेख अंत तक पढ़ें शायद इसके बाद आप भी क्या पता तरक्की करदें अपने पहाड़ों में रहकर ही। आइये जानतें हैं। बने रहिये बिल्कुल अंत तक

देहरादून के हर्षित सहदेव मनोवैज्ञानिक और मेन्टल हेल्थ प्रोफ़ेसनल हैं जी हां इनकी कहानी पढिये अगर आप उत्तराखंड में पलायन की मार से झेल रहे हैं और आगे कुछ करना चाहते हैं। आपको काफी हद तक प्रोत्साहन मिलेगा। इनको जानने के लिये आपको ले चलते हैं जून 2013 में उत्तराखंड में आये हिमालय सुनामी नाम की आपदा में क्योंकि यहीं से इनके फेमस होने की शुरुआत हुई कैसे पढिये आगे।

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2013 में हर्षित उत्तराखंड के लोगों के जो हिमालय सुनामी से अस्त व्यस्त हो चुके थे।उनकी मदद करना चाहते थे ऐसी स्तिथि में उनके एक दोस्त उनको उत्तरकाशी के दिदसारी गांव में ले गए जहां 75% खेत बाढ़ में बह गए और गांव को बाहरी क्षेत्रों से जोडने वाला एक मात्र पुल टूट गया जिसके बाद लोगों का बाहरी दुनिया से सम्पर्क ही खत्म हो गया लेकिन हर्षित ने इन लोगों की मदद की और स्थानीय लोगों के साथ आंदोलन कर प्रसाशन से पुल दोबारा बनाने की गुहार लगाई जिसके बाद पुल को तैयार कर लिया गया लेकिन अभी भी हर्षित व सम्पूर्ण ग्राम वासियों के सामने समस्या यह थी कि उनके खेत उनके पास नहीं थे ।इसके बाद हर्षित करीब डेढ़ साल गांव में रहने के बाद देहरादून आ गए लेकिन इसी बीच साल 2018 में फ्रांस की एक युवती जो भारत आई थी उन्होंने हर्षित के बारे में मीडिया रिपोर्ट्स में पढ़ा और उनसे मिलने तुरंत देहरादून पहुंच गई।

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क्लोए ऐंडा नाम की इस युवती ने हर्षित से उस गांव में जाने की होड़ लगाई जहां हर्षित ने काम किया था इसके बाद दोनों उत्तरकाशी के didsari गांव में पहुँचे। गांव ज्यों का त्यों था यहां पलायन का दंश अभी भी मौजूद था जंगली जानवर फसल नष्ट कर रहे थे न कोई नौकरी न कोई पेशा बस कुछ देखने को था तोह गरीबी। जी हां इसके बाद हर्षित ने क्लोए को गांव का पिंक सॉल्ट यानी गुलाबी पिसा हुआ नमक खिलाया।

देखा जाय तो इस नमक को गाँव के लोग लहसुन,मिर्च,हल्दी,सफेद नमक तथा कुछ अन्य जड़ी बूटियों से बनाते हैं। इस नमक की क्लोए ने काफी प्रसंशा की और बोला वे इस नमक को फ्रांस में ले जाकर बेच सकती है। यहां से मानों एक नया परिवर्तन शुरू हो गया आगे पढ़िए।

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दोनों ही गांव के लिए कुछ करना चाहते थे उन्होनें गांव वालों से लगभग 10 हज़ार रुपये का नमक बनवा लिया और इस नमक को देहरादून में लाकर इसकी पैकेजिंग हिमशक्ति ब्रांड करलीं। बता दें इस नमक को काफी अच्छे दाम में बेच कर उच्च मुनाफा दोनों ने कमा लिया केवल उत्तराखंड भारत में ही इस नमक को पसन्द नहीं किया गया बल्कि क्लोए इस नमक को फ्रांस तक लेकर गयी जहां के लोगों द्वारा इसकी प्रसंसा की गई।

हर्षित ने अपना स्टार्टअप शुरूं किया है जिसमें इन्होंने didsari के आसपास के 14 किसानों की एक टीम तैयार की है। हर्षित महीने में 2 से 2.50 लाख कमा रहे है और इनकी कंपनी की मार्किट वैल्यू 9 करोड़ है।अब क्या चाहिए दोस्तों होने को तो कुछ भी सम्भव है हम बहाने बनाकर पहाड़ों को खाली कर रहें हैन इसी स्तिथि में अपने कीमती पहाड़ों को हम छोड़ते जा रहें जबकि पहाड़ सबसे बढ़िया हों सकते हैं अपना जीवन बदलने के लिए। आपको कैसा लगा ये लेख उम्मीद करती हूं आपको ये लेख पसन्द आया होगा आपको प्रोत्साहन मिला होगा अगर आपको अच्छा लगा तो ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।

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