उत्तराखंड: देश के सैनिक देश के रक्षक होते हैं, जो शरहद पर रहकर देश की रक्षा करते हैं। इनमें देशभक्ति कूट कूट कर भरी होती है। यह अपनी मातृभूमि को सबसे ज्यादा प्यार करते हैं।यह देश की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर देते हैं। सैनिक देश और देश की रक्षा के लिए न हीं रेगिस्तान की तपती धरती देखते हैं और न हीं पहाड़ो की सर्दी । यह खराब से खराब हालात में भी शरहद पर चौकन्ना होकर खड़े रहते हैं।सैनिक त्योहारों पर भी अपने घर नहीं जा पाते हैं। उनके लिए सभी देशवासी उनका परिवार हैं वे अपने परिवार वालों से पहले सभी देशवासियों के बारे में सोचते है। वह दुश्मनों का डटकर मुकाबला करते हैं और अपनी अंतिम श्वास तक उनका हिम्मत से सामना करते हैं।लेकिन देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर भी उनके परिवार वालों को अपना जीवन संघर्ष से जीना पड़ता है। उनकी कमाई के लिए ही उनको लड़ना पड़ता है।बहुत से ऐसे मामले है जो 8-10 साल होकर अभी तक सुलझ नहीं पाए है।और कुछ मामले ऐसे है जिन्हे बड़ी मुश्किल बाद सुलझाया गया है। ऐसे ही उत्तराखंड के ऐसे ही तीन मामले आज हम आपको बताने जा रहे है।
पहला मामला पौड़ी गडवाल की सरोजनी देवी का है जिन्होंने 10 सालों की लंबी लड़ाई के बाद अपने हक़ के पैसे प्राप्त किए है।बैंक एवं दफ्तरों के बहुत चक्कर काटने के बाद उनकी एरियर प्राप्त हुई है।उन्होंने बताया कि पति के शाहिद होने के बाद उन्हे पेंशन में सिर्फ 12 हजार रूपए मिलते थे घिर कुछ समय बाद 17 हजार तक बढ़ गए।लेकिन 10 सालों से भी वे इतने ही रहे। अब 10 साल बाद कहीं जाकर उन्हे पूरी राशि प्राप्त हुई है।
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दूसरा केस राजेश्वरी देवी का है जिनके पति सेना में राइफलमैन थे।उनके शहीद होने के बाद उनकी पत्नी को 6 साल से लगातार समान्य पेंशन मिल रही थी। 2013 से 2019 तक उन्होंने बहुत से चक्कर काटे।आखिर 6 साल बाद जाकर उन्हे भी अपना 4 लाख 60 हजार का एरियर प्राप्त हुआ।
तीसरा केस रिटायर्ड लेफ्टिनेंट मदन मोहन सिंह जो कि महार रेजिमेंट से है।से युद्ध के दौरान घायल हो गए थे।इस कारण से उन्हे 75 फीसदी दिव्यांगता के आधार पर पेंशन दी जानी चाहिए थी।लेकिन बैंक उनको सिर्फ 50 फीसदी ही पेंशन दी जा रही है।अब कहीं सितंबर 2020 में जाकर उन्हे अपने कई सालों का बकाया पैसा मिला है।