आखिर कोन है रावत? पड़िए उत्तराखंड के इन रावत राजपूतों की कहानी, और गौरवशाली इतिहास..

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Story of Rawat cast in Uttarakhand: आज हम आपको उत्तराखंड के इन रावत राजपूतों की कहानी बताने जा रहे हैं। आपको बता दें की इतिहास में रावत का मतलब इस प्रकार किया हैं की, रा मतलब राजपुताना, व मतलब वीर और त मतलब तलवार। इसका मतलब है कि पराक्रमी, बलशाली, प्रधान, क्षत्रिय शूरवीर जो तलवार के धनी हैं, इसलिए वे रावत- राजपूत कहलाते हैं | इतिहासकार बताते हैं कि रावत शब्द राजपुत्र का ही अपभ्रंश है ।

आपको बता दें की, रावतों को ये एक पदवी मिली है, जो की 10 हाथियो की सेना से मुकाबला करने वाले राजपूत शूरवीर योध्दा को प्रदान की जाती थी। आपको बता दें की, रावत की पदवी की गरिमा को किसी ने कहा है की, ‘’सौ नरों एक सूरमा, सौ शूरों एक सामन्त, सौ सामन्त के बराबर होता है, एक रावत राजपूत। बताया जाता है की, राजपूत काल मे रावत की जाति न होकर चौहान, परमार,सिसोदिया, पवाँर, गहड़वाल आदि राजघरानो में पराक्रमी शासक वर्ग की पदवी थी।

बताया जाता है की, सन् 1832 में फ्रांस के प्राकृतिक वेता मि. जेक्मेन्ट ने रावत राजपूतों के लिए लिखा था कि No Rajput Chief No Mughal Emperor had ever been able to sub-due them, Merwara always remained independant ! इसका मतलब है कि न तो कोई राजपूत राजा,ना ही कोई मुगल सम्राट इन्हें अपने वश में कर पाया। इन राजपूतों का राज्य हमेशा आज़ाद रहा। इन सभी राजघरानो में रावत, पदवी से सम्मानित शूरवीर रावत-राजपूत कहलाते थे। क्षत्रियों में रावत अपनी विशेष पहचान रखते थे।

                            Story of Rawat cast in Uttarakhand

कहा जाता है कि राजस्थान में रावत की पदवी अनूपवंशीय बरड़ राजपूतो में सबसे पहले वीहल चौहान राजपूत सरदार को मिली थी, इसके साथ ही उनके पराक्रम पर मेवाड़ दरबार में रावल जैतसी द्वारा ये उपाधि दी गई थी। और ये ही नही इसके लिए उन्हें 10 गांवो का चारभुजा राज्य दिया गया था। रावत-राजपूत स्वाभिमान के धनी रहे है। रावत-राजपूतों ने अपना सिर कटाना स्वीकार कर लिया पर पराधीनता उन्होंने कभी भी पसन्द नहीं की, जिसका एक गौरवपूर्ण इतिहास भी रहा है।

कहा जाता है कि, उत्तराखंड में रावत राजपूत राजस्थान के राजपूताना परिवारों से आए थे। और इनमे नैन सिंह रावत, जनरल बिपिन रावत, त्रिवेंद्र सिंह रावत जैसे ये बड़े नाम हैं, जिन्होंने हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित किया है। गढ़वाल में भी 52 गढ़ों में से कई गढ़ों पर रावत जाति का राज रहा है। रावत जाति के इस गढ़ का अंतिम मालिक भूपसिंह था। ये जौनपुर में था। रामी गढ़ जिसमे रावतों का ही राज रहा करता था। बताया जाता है की, बिराल्टा गढ़ भी एक ऐसा गढ़ है, जहां रावत जाति के राजाओं ने राज किया था। एक इस में और आता है, मुंगरा गढ़ जो रवाई स्थित ये गढ़ रावत जाति का था, जहां रौतेले रहा करते थे। इसलिए रावत पराक्रमी, बलशाली, प्रधान, क्षत्रिय शूरवीर है।

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