हल्द्वानी- 1999 मैं लड़े गए कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों को खदेड़ने के लिए गई सेना की एक टुकड़ी में शामिल लांसनायक मोहन सिंह 7 जुलाई को शहीद जो गए थे। शहीद मोहन सिंह बागेश्वर के रहने वाले थे। शहादत से 16 दिन पहले उन्होंने आखिरी बार अपनी पत्नी से बात की थी, और कहा था कि मैं चिट्ठी भेजूंगा लेकिन सुबह देश के लिए कुर्बान हो गए।मूल रूप से मोहन सिंह बागेश्वर के थे। लेकिन उनकी शहादत के बाद उनका परिवार हल्द्वानी के नवाबी रोड मथुरा कॉलोनी में बसा हुआ है। पति की शहादत के वक्त रानीखेत में एमईएस क्वाटर में रह रहीं उमा देवी ने खुद को और अपने परिवार को पति के जाने के बाद बड़ी ही हिम्मत के साथ संभाला है।
आपको बता दें कि लांसनायक मोहन सिंह सेकंड नागा रेजीमेंट मे थी। 20 दिनों की छुट्टी काट कर वह 23 अप्रैल 1999 को ड्यूटी पर वापस लौटे थे। इसी बीच कारगिल का युद्ध छेड़ा और उन्हें 25 जवानों की टीम सहित सरहद पर भेजा गया।पत्नी उमा देवी ने बताया कि शहादत से 16 दिन पहले उनका फोन आया था जिसमें उन्होंने कहा कि कुछ टास्क मिलने पर फौज के साथ जा रहा हूं कुछ दिन फोन नहीं कर पाऊंगा तो चिट्ठी भेजूंगा। लेकिन देश के लिए मर मिटने की कसम खाने वाले मोहन सिंह ने 7 जुलाई को दुश्मनों से लोहा लेते समय अपने प्राण त्याग दिए।
उनकी शहादत के समय, बड़ी बेटी रंजन 6 साल, छोटी बेटी मिताली 4 साल और बेटा प्रह्लाद 18 महीने का था। कुल 26 वर्षीय उमा देवी के लिए अपने बच्चों का अकेले पालन पोषण करना चुनौती भरा था लेकिन उमा देवी ने हिम्मत नहीं हारी। 2001 में वह हल्द्वानी आ गई।अब बेटी रंजना की शादी हो चुकी है, बेटी मिताली एम-फार्म और बेटे प्रह्लाद में बीबीए की डिग्री हासिल की है। लात नायक मोहन सिंह को सेना मेडल से सम्मान किया गया। उमा देवी ने बताया कि उन्होंने कई बार सरकार को पत्र लिखा लेकिन अभी तक उनके बच्चों को सरकारी नौकरी नहीं मिल पाई।
उमा देवी ने बताया कि शहीद की पत्नी होना मेरे लिए एक गर्व की बात है। पूर्व जिला सोल्जर बोर्ड अधिकारी मेजर बीएस रौतेला ने बताया कि कारगिल युद्ध में नैनीताल जिले से पांच लोगों ने शहादत दी थी।जिसमें मेजर राजेश अधिकारी (महावीर चक्र), लांसनायक मोहन सिंह (सेना मेडल), लांस नायक चंदन सिंह (सेना मेडल), लांस नायक राम प्रसाद ध्यानी व सिपाही मोहन चंद्रा शामिल थे।