दिल्ली: कोरोना महामारी के चलते आज हम आपको एक कहानी बताने जा रहे हैं जो की एक डॉक्टर की है। जहां उन्होंने बताया की मैं डॉक्टर हूं, और कोरोना की वजह से मैं छिपकर घर में नहीं बैठ सकती थी। मेरा काम है और काम से बढ़कर जिम्मेदारी है। लेकिन घर, परिवार और बच्चे और बुजुर्ग की चिंता हमें भी होती है, लेकिन इसके बाद भी हम संक्रमण के डर के बीच हमने पूरे साल काम किया और आज भी कर रही हूं। आपको बता दें की, ये आईवीएफ एक्सपर्ट एवं जेनस्ट्रिंग्स डायग्नोस्टिक की फाउंडर डॉक्टर गौरी अग्रवाल का कहना है।
उसके बाद उन्होंने कहा कि, जब कोरोना की शुरुआत हुई थी, हमें नहीं पता था कि यह कब तक चलेगा। और अस्पताल या लैब से घर आते हुए उन्हें डर लगता था कि कहीं मैं अपने परिवार के लिए संक्रमण का कैरियर न बन जाऊं। और सबको महामारी के चलते एक-एक दिन निकालना मुश्किल हो रहा था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। साथ ही उन्होंने बताया की, उनके पति पॉजिटिव हो गए, फिर भी मरीजों का इलाज और जांच जारी रखा है क्योंकि जो अभी जो हालात हैं, उसमें जिम्मेदारी सबसे ऊपर है।
वहीं डॉक्टर गौरी ने कहा कि घर में सास ससुर, दो बच्चे और पति हैं, उनके पति भी डॉक्टर हैं। और पिछले साल लॉकडाउन की घोषणा हो गई, मेड का आना बंद हो गया। घर की सफाई से लेकर खाना बनाना, दो-दो बच्चों को पालना और उसके बाद अस्पताल और लैब के काम, करना। उन्होंने बताया की उनकी एक 5 साल की बेटी है, उसकी ऑनलाइन क्लास शुरू हो गई।
और वर्किंग पैरंट्स की वजह से दोनों में से कोई काम नहीं छोड़ सकते थे, क्योंकि इस समय हम दोनों की जरूरत समाज और देश को थी। और मजबूरी में बच्ची की पढ़ाई प्रभावित हुई, लेकिन मरीजों के इलाज, जांच में हमने कोई कमी नहीं होने दी। हमने उनको जितनी जरूरत थी वो दी। हालात यह थे कि घरवाले कहने लगे कि काम छोड़ दो, लेकिन जब महामारी फैली हो तो एक डॉक्टर कैसे घर बैठ सकता है। इसलिए आज भी में अपने परिवार के साथ-साथ अपनी डॉक्टर होने की जिम्मेदारी भी अच्छे से निभा रही हूं।और आगे भी निभाती रहूंगी।