उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से आई एक दर्दनाक खबर ने चुनावी प्रक्रिया के पीछे छिपे सामाजिक और मानसिक दबावों को उजागर कर दिया है। लेलू ग्राम पंचायत के रहने वाले लक्ष्मण गिरी, जिन्हें लोग LG बाबा के नाम से जानते थे, ने बीडीसी सदस्य पद का चुनाव हारने के बाद आत्मघाती कदम उठा लिया।
31 जुलाई को मतगणना के दौरान उन्हें सिर्फ 15 वोट मिले और वह पांचवें स्थान पर रहे। चुनाव परिणाम के बाद वो शाम को घर गए और उन्होंने ज़हरीला पदार्थ खा लिया। परिजन उन्हें गंभीर हालत में जिला अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।
LG बाबा पिथौरागढ़ के वड्डा क्षेत्र में एक छोटी सी चाय की दुकान चलाकर अपना गुजारा करते थे। सीमित साधनों के बावजूद उन्होंने हिम्मत दिखाकर बीडीसी चुनाव लड़ा था। गांववालों का कहना है कि चुनाव परिणामों के बाद वे तनाव में दिख रहे थे, लेकिन किसी ने यह अंदाजा नहीं लगाया था कि वे इतना बड़ा कदम उठा लेंगे। परिजनों के मुताबिक, वह पहले भी आत्महत्या का प्रयास कर चुके हैं।
यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की हार नहीं है, यह उस मानसिकता पर भी सवाल उठाती है जिसमें चुनावी हार को अपमान के रूप में देखा जाता है। लोकतंत्र में हार-जीत आम बात है, लेकिन जब हार को सामाजिक तिरस्कार से जोड़ा जाता है, तब यह व्यक्ति को मानसिक रूप से तोड़ सकता है।
इस घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम अपने समाज में मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक सहारे को लेकर गंभीर हैं? और क्या हमारी चुनावी प्रक्रिया सिर्फ वोटों का खेल है या इसके पीछे एक इंसान की उम्मीदें और भावनाएं भी छुपी होती हैं?