चमोली: भारत के हर वीर सिपाही का हृदय हमेशा यही गुनगुनाता रहा है के “मैं रहूं या ना रहूं भारत ये रहना चाहिए”। इसी गीत की धुन गुनगुनाते हजारों नौजवान सिपाही देश की रक्षा में हर दिन अपने प्राणों की आहुति देते है और कुछ परिवार ऐसे भी होते है जो अपने बेटो का चेहरा एक आखरी बार देखने को भी तरस जाते है।
कुछ ऐसी ही कहानी है चमोली जिले के थराली तहसील के गांव कोलपुड़ी निवासी लापता सैनिक श्री नारायण सिंह की जिसे सुन आपकी भी आंखे नम हो जाएंगी। वर्ष 1968 में हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे में वायुसेना के एएन-12 विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने पर लापता हुए सिपाही नारायण सिंह की पार्थिव देह 56 साल बाद लापता हुए अन्य 4 सिनिको के साथ पाई गई है।
सिपाही नारायण सिंह ने देश को अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है। उन्होंने 1965 के भारत पाक युद्ध में भी बड़ चढ़कर परिभाग किया था। एएमसी ( आर्मी मेडिकल कॉर्प्स) में नियुक्त रहे नारायण सिंह के साथी कोलपुड़ी निवासी सूबेदार गोविंद सिंह, सूबेदार हीरा सिंह बिष्ट और भवान सिंह नेगी बताते हैं कि नारायण सिंह बहुत सौम्य तथा जुनूनी व्यक्ति थे जिनके भीतर देश प्रेम और देश सेवा जैसे गुण कूट कूटकर भरे थे।
सिपाही नारायण सिंह के भतीजे व कोलपुड़ी के ग्राम प्रधान जयवीर सिंह बताते है की सोमवार उन्हें सेना के कुछ अधिकारियों से सूचना मिली कि जिन 4 सिपाहियो के अवशेष मिले है उनमें नारायण सिंह की पहचान भी की जा चुकी है। अधिकारियों से मिली सूचना के मुताबिक नारायण सिंह का पार्थिव शरीर बर्फ में दबा होने के कारण सुरक्षित पाया गया जिनकी वर्दी की जेब में मिले पर्स के भीतर एक कागज में नारायण सिंह ग्राम कोलपुड़ी और बसंती देवी लिखा पाया गया। साथ ही उनकी वर्दी पर लगी नेम प्लेट पर भी उनका नाम मौजूद था जिससे उनकी शिनाख्त की गई।
बताया जा रहा है की उनके पार्थिव अवशेष बृहस्पतिवार तक उनके गांव पहुंच सकते है। उनकी धर्म पत्नी श्रीमती बसंती देवी ने उनके लापता होने के 42 साल बाद तक उनका इंतजार किया। नारायण हर वर्ष घर आते थे और जब देश सेवा में रहते तब खतों के जरिए उनसे बातें किया करते। एक दिन घर आए एक टेलीग्राम से एक विमान के लापता होने तथा नारायण सिंह के गायब होने की खराब आई जिसके बाद से उनके खत आना भी बंद हो गए। पति की आस देखते देखते वर्ष 2011 में बसंती देवी ने देह त्याग दी।