कानून के अनुसार गंभीर अपराध करने वाल अपराधियों को मृत्युदंड दिया जाता है। यानी अधिकतर देशों में आज भी फांसी की सजा दी जाती है।कोर्ट द्वारा फांसी की सजा मिलने के बाद जेलर द्वारा फांसी का समय निर्धारित किया जाता है। यह प्रायः सुबह का समय ही रखा जाता है।
जेलर द्वारा समय निश्चित किए जाने के बाद जल्लाद को मृत्युदंड की तारीख की सूचना दे दी जाती है। जेल के ही कैदियों द्वारा फांसी का फंदा तैयार किया जाता है। फांसी के समय वहां मौजूद मौजूद अधिकारी, सिपाही व अन्य लोग मुंह से एक शब्द नहीं बोलते वरन इशारों में ही कार्य करते हैं।
मृत्युदंड के अपराधी को सिपाही फांसी के तख्त पर पकड़कर लाते हैं। फांसी में सबसे बड़ी भूमिका होती है जल्लाद की। जिस अपराधी को फांसी दी जाती है, उसके आखिरी वक्त में उसके साथ जल्लाद ही खड़ा होता है। वहीं, फांसी देने से पहले जल्लाद के कानों में कुछ बोलता है और उसके बाद चबूतरे से जुड़ा लीवर खींच देता है।
दरअसल, जल्लाद फांसी देने से पहले अपराधी के कानों में बोलता कि हिंदुओं को राम-राम और मुस्लिमों को सलाम, मैं अपने फर्ज के आगे मजबूर हूं। मैं आपके सत्य के राह पर चलने की कामना करता हूं।
इसके बाद जेलर द्वारा रूमाल से इशारा किए जाने पर जल्लाद फांसी का लिवर खिंच लेता है। फांसी के 15 मिनट बाद बॉडी को उतार कर डॉक्टर द्वारा मृत्यु की पुष्टि की जाती है और कागजी कार्यवाही कर शव को उसके परिजनों के सुपुर्द कर दिया जाता है।