उत्तराखंड: उड़द की दाल से बन रहा है डांडा नागराज का मंदिर

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Temple of Danda Nagaraja is being built in Uttarkashi from urad dal
Temple of Danda Nagaraja is being built in Uttarkashi from urad dal (Image Credit: Social Media)

पूरे देश में दुनिया में सभी को मालूम है कि उत्तराखंड देवताओं का राज्य है. इसीलिए उत्तराखंड को देवभूमि उत्तराखंड भी कहा जाता है. उत्तराखंड के इतिहास में रुचि रखने वाले लोग यह बखूबी जानते होंगे कि उत्तराखंड में पुराने समय में मकान बनाने के लिए रेता बजरी सीमेंट का नहीं बल्कि उड़द की दाल का प्रयोग किया जाता था.

मगर आधुनिक जमाने की तरफ बढ़ते बढ़ते सभी लोगों ने ईट बजरी व सीमेंट से ही अपने मकानों को बनाना शुरू कर दिया और भवनों को बनाने की शैली कहीं खो सी गई. मगर उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी में यह दौर फिर से लौट आया है.

उत्तरकाशी के भंडारस्यूं क्षेत्र में डांडा नागराजा का मंदिर को उसी पुरानी शैली का प्रयोग करके उड़द की दाल से बनाया जा रहा है. वहां के रहने वाले ग्रामीण अपने-अपने घर से उड़ा दिला कर मंदिर को दान कर रहे हैं. जिस तरह यहां सुनने में काफी ज्यादा रोचक लग रहा है उसी तरह इसके पीछे की कहानी भी बहुत ही ज्यादा रोचक है.

बताया जा रहा है कि देवडोली के आदेश पर मंदिर निर्माण उड़द की दाल के द्वारा किया जा रहा है ना कि किसी भी प्रकार के सीमेंट और रेत-बजरी के द्वारा. डांडा नागराज मंदिर समिति के अध्यक्ष विजेन सिंह कुमांई ने बताया कि देवता की देवडोली ने यह आदेश दीया की उनके मंदिर को रेत बजरी से नहीं बल्कि उड़द की दाल से बनाया जाए.

सभी ग्रामीण अपनी श्रद्धा के अनुसार अपने घरों से उड़द की दाल को पीसकर मंदिर को दान कर रहे हैं. उत्तरकाशी की गंगा-यमुना घाटी अपनी खास तरह के भवन निर्माण शैली के लिए जाने जाते हैं. यहां के गांवों में पंचपुरा सहित ढैपुरा शैली के मकान सबसे ज्यादा बनाए जाते हैं.

इस तरह के भावनाओं में पूरे संयुक्त परिवार के सहित मवेशियों के रहने के लिए भी जगह होती है. मगर बदलते वक्त के साथ-साथ अब इन मकानों का स्वरूप भी धीरे-धीरे बदलता जा रहा है.

इस विलुप्त होती भवन शैली को बचाने के लिए जुणगा-भंडारस्यूं के ग्रामीणों ने एक नई शुरुआत की है. 10 से 11 ग्रामीण इस मंदिर के निर्माण में सहयोग कर रहे हैं. उम्मीद लगाई जा रही है कि इस मंदिर का निर्माण 1 साल के अंदर अंदर पूरा हो जाएगा.

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