टिहरी गढ़वाल के पांच स्कूलों के मॉडल की देशभर में हो रही चर्चा, ऐसे बटोरी सुर्खियां

0
The model of five schools of Tehri Garhwal is being discussed in the country
The model of five schools of Tehri Garhwal is being discussed in the country (Image Source: Amar Ujala)

जब से राष्ट्रमंडल युवा पुरस्कार की घोषणा हुई है तब से  टिहरी गढ़वाल के पांच स्कूलों में शिक्षा के प्रयोग की चर्चा देश भर में हो रही है. इन सभी स्कूलों में मिक्स लर्निंग के लिए पहली-दूसरी और तीसरी से पांचवीं तक के बच्चे एक ही कक्षा में पढ़ते हैं. इस प्रोग्राम को बच्चों और शिक्षकों के लिए बनाने वाली युवती का नाम श्रुतिका सिलस्वाल है. जोकि सिंपल फाउंडेशन की एसोसिएट डायरेक्टर हैं और साल 2021 से उत्तराखंड में काम कर रही हैं.

जिस वजह से शनिवार के दिन उन्हें इस अभिनव प्रयोग के लिए राष्ट्रमंडल युवा पुरस्कार देने की घोषणा की गई है. या पुरस्कार उन्हें सितंबर के महीने में लंदन में मिलेगा. दलाईलामा फेलोशिप कर रहीं श्रुतिका अभी यूएसए में हैं. उन्होंने टेलीफोन में बताया कि इन सभी स्कूलों में तीन प्रोग्राम है. जो कि जिला प्रशासन के साथ मिलकर लगभग 5 स्कूलों में चल रहे हैं. हमने निपुण भारत के तहत शिक्षकों के लिए भी प्रोग्राम बनाया है.

हमारा यह प्रयास था कि बच्चों को 3 तरीके से शिक्षा मिले. पहला, उनका शैक्षणिक स्तर अच्छा हो, दूसरा उनका सामाजिक और भावनात्मक विकास हो और तीसरा 21वीं सदी की स्किल्स के हिसाब से उनमें क्रिटिकल थिंकिंग विकसित हो. श्रुतिका के द्वारा इन सभी स्कूलों में यहां प्रोग्राम लगभग 2 साल पहले 2021 में शुरू किए गए थे. इन स्कूलों में बच्चों के साथ-साथ ग्रामीण युवाओं को भी जोड़ा जा रहा है और समय-समय पर उनके अभिभावकों को भी स्कूल में बुलाया जाता है. इन प्रोग्राम्स की वजह से बहुत से बदलाव देखने को मिले हैं. जिनमें से पहला यह है कि अब टीचर्स में काफी ज्यादा खुलापन देखने को मिल रहा है. उनके साथ बहुत ही क्लोजली ग्राउंड में काम किया जाता है.

राम के जरिए यहां भी देखने को मिला है कि जब कोई भी बच्चा अपने आसपास की चीजों को सोच पाता है और उसे विजुलाइज कर पाता है तो उसकी लर्निंग पावर और भी ज्यादा स्ट्रांग हो जाती है. स्कूलों के अंदर बच्चों के साथ भावनात्मक लगाव के लिए प्रैक्टिस भी जाती है. हर दिन सुबह बच्चों से शिक्षक बात करते हैं कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं, उन्होंने आज क्या खाया। क्या आज वह ठीक से सो पाए या नहीं। क्या उसके घर में कोई समस्या तो नहीं। इस तरह की बातें बच्चों को प्रभावित करती हैं और उनको यहां महसूस होता है कि कोई उनकी भी सुन रहा है. जिस वजह से काफी ज्यादा अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं.

श्रुतिका ने अपने बारे में बताते हुए कहा कि जिस वक्त वह दिल्ली में पढ़ाई कर रही थी. उसी बीच वह यूथ एलाइंस संस्था के साथ वालंटियर के रूप में काम कर रही थी. जिसके बाद उन्होंने अपनी बीकॉम की पढ़ाई खत्म करके सीए की तैयारी करने लगी. मगर उनका मन सामाजिक कार्यों में ज्यादा लगने लगा था. कोविड-19 के दौरान भी वह अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रही थी.

उस दौरान बहुत से लोग उत्तराखंड से पलायन करके दूसरे शहरों में जा रहे थे. इस बारे में जब उन्होंने बहुत से लोगों से बात की तो सबसे ज्यादा समस्या बच्चों की पढ़ाई की आई थी. गांव का अनुभव श्रुतिका को इसलिए भी था क्योंकि उनकी मां भी गांव में शिक्षिका थी. जिस वजह से उन्हें या लगा कि उन्हें वापस गांव जाना चाहिए और लोगों की मदद करनी चाहिए. जिसके बाद उन्होंने सिंगल फाउंडेशन से संपर्क किया और वहां उनके साथ काम करने लगी.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here