उत्तराखंड- आपको बता दें की,आजकल महाकुंभ में राम सेतु का पत्थर आकर्षण का केंद्र बन रहा है। रामेश्वरम से लेकर श्रीलंका के बीच बना रामसेतु आज भी पौराणिक इतिहास का बड़ा रहस्य में है। आपको बता दें जितना ये पुल जितना रहस्यमयी है, उतना ही रहस्यमयी इस पुल के निर्माण में लगे पत्थर हैं। सबको पता है की, इस पुल के निर्माण में इसे पत्थर लगे थे जो पानी में डूबते नहीं थे। और आजकल रामसेतु के एक ऐसे ही चमत्कारी पत्थर के दर्शन इन दिनों हरिद्वार में हो रहे हैं। आजकल रामसेतु का पत्थर हरिद्वार कुंभ मेले में भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। रामेश्वरम से हरिद्वार लाया गया ये पत्थर पानी में तैर रहा है, जिसको देख कर लोग हैरान हैं।
हरिद्वार महाकुंभ में जूना अखाड़े में बनी छावनी में अद्भुत रामसेतु पत्थर के श्रद्धालु दर्शन कर रहे है। बताया जा रहा है की, रामसेतु का ये पत्थर करीब 9000 वर्ष पुराना त्रेता युग का है, जो की साधु-संतों और गुरुओं का धरोहर है। इस चमत्कारी पत्थर को रामेश्वरम से हरिद्वार लाया गया है, इस पत्थर का वजन 21 किलो है। इस संदर्भ में नागा संन्यासी दौलत गिरि का कहना है कि यह हमारे सनातन धर्म की पहचान और धरोहर है। जिन पर प्रभु श्रीराम कृपा करें वो पत्थर भी तर जाते हैं।
रामसेतु पत्थर के दर्शन मात्र से ही भक्तजनों की मनोकामना पूरी हो जाती है, और इस पत्थर पर प्रभु श्रीराम के पदचिन्ह हैं और उनका नाम भी लिखा हुआ है। और इसके आगे वो कहते हैं की धार्मिक मान्यता है कि जब लंकापति रावण की कैद से मां सीता को मुक्त कराने के लिए प्रभु श्रीराम दक्षिण भारत के समुद्र तट रामेश्वरम पहुंचे थे तो, सामने विशाल समुद्र होने की वजह से उनका लंका पहुंचना मुश्किल हो गया था।
तब नल और नील नाम के दो वानरों ने पत्थरों पर राम नाम लिखकर लंका और रामेश्वरम के बीच सेतु बनाया था। जिसके बाद श्रीराम और वानर सेना लंका पहुंची और रावण का वध कर राम जी माता सीता को लेकर अयोध्या लौटे आए थे। वहीं बताया जाता है की, रामसेतु पर नासा समेत अलग-अलग संस्थानों ने कई शोध किए। अगर आप भी हरिद्वार महा कुंभ मेले के लिए पहुंचे हो तो जरूर एक बार राम सेतु पत्थर के दर्शन जरूर करिए।