उत्तराखंड: देवताओं से बात करने में आ रही है बड़ी समस्या, ये है वजह

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There is a big problem in talking to the gods in Uttarakhand, this is the reason
There is a big problem in talking to the gods in Uttarakhand, this is the reason (Image Source: Live Hindustan)

उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में पलायन एक बहुत बड़ी समस्या बनकर सामने आ रहा है. इस पलायन का असर जागर तक में पड़ रहा है. पहाड़ों को छोड़कर दशकों पहले से शहरों में बसे हुए लोगों ने अपने गांव के लिए प्यार और अपनी बोली भाषा को भले ही छोड़ दिया हो. मगर अभी तक अपने लोक देवताओं के लिए दिल में आस्था बनी हुई है. अपनी बोली भाषा से किए जाने वाले परहेज के कारण अब आने वाली पीढ़ी के सामने देवताओं से बातचीत करने मैं बहुत बड़ी समस्या बन रही है. जाखड़ जैसी परंपराओं से देवताओं से संवाद करने के लिए ट्रांसलेटर भी रखने पढ़ रहे हैं.

पहाड़ी राज्यों में आज भी आपदा और विस्तार से निपटने के लिए जागर लगाकर देवताओं के आवाहन की परंपरा रही है. इसमें तीन खास किरदार है. जगरिया, डंगरिया, और संयोकार. मान्यता है कि जो जगरिया होता है वह कुल देवताओं को मनुष्य के शरीर में आने के लिए प्रेरित करता है. जिस मनुष्य के शरीर में देवता प्रवेश करते हैं वह व्यक्ति डंगरिया कहलाता है और जिस व्यक्ति ने जगरिया के द्वारा अपनी समस्याओं का समाधान कराना है वह संयोकार या आयोजक कहलाता है.

अब समस्या यह रही है कि जगरिया और डंगरिया तो अपनी भाषा मैं ही बात करते हैं मगर संयोकार की नई पीढ़ी उनकी भाषा को ही नहीं समझ पा रहे हैं. रात्रि के दिनों में सामूहिक जाकर लगती हैं .जिनमें 1 दिन के जागर को जागो, 4 दिन के जागर को चौरास, और 11 व 22 दिन के जागर को बैसी कहते हैं.

जागर के वक्त पारंपरिक वाद्य यंत्रों का एक खास महत्व होता है. कुमाऊं क्षेत्रों में थाली और डमरु बजाकर देवताओं का आवाहन किया जाता है. ढोल और नगाड़ों की थाप पर भी देवता अवतरित होते हैं. डमरू के आकार में ही एक और वाद्य यंत्र हुड़की का भी जागर के वक्त बहुत बड़ा महत्व होता है.

रानीखेत के जगरिया आनंद राम बताते हैं कि लगभग 7 साल पहले उनके सामने एक ऐसा पहला मामला सामने आया जिसमें कि घर के बुजुर्ग तक ढंग से पहाड़ी नहीं समझ पा रहे थे. लेकिन परिवार के दुख दूर करने के लिए लोक देवताओं की पूजा करना बहुत ज्यादा जरूरी था. जिस वजह से मुझे अपने साथ एक 80 साल के बुजुर्ग को लेकर जाना पड़ा.

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