
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता कानून के लागू होने के बाद एक नए युग की शुरुआत हुई है, जिसमें हल्द्वानी के ग्रामीण क्षेत्र में लिव-इन रिलेशनशिप की पहली पंजीकरण प्रक्रिया संपन्न हुई है। साथ ही नए नियमों के तहत, शादियों और लिव-इन रिलेशनशिप दोनों के पंजीकरण की अनिवार्यता निर्धारित की गई है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में नए नियमों का प्रभाव दिखने लगा है, जहां लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण का पहला मामला सामने आया है, जिसमें उपजिला अधिकारी द्वारा पंजीकरण किया गया है। बता दे कि कुमाऊं मंडल में यूसीसी के प्रावधानों के तहत रिलेशनशिप रजिस्ट्रेशन का पहला मामला दर्ज किया गया है, जो एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है।
वहीं अब ग्रामीण क्षेत्र में लिव-इन रिलेशनशिप का पहला मामला पंजीकृत किया गया है, जैसा कि एसडीएम परितोष वर्मा ने बताया है। उन्होंने बताया की महिला विधवा है और उसका एक बच्चा है, और इस जोड़े ने शुक्रवार को लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन कराया। सरकारी नियमों के तहत, लिव-इन-रिलेशनशिप को रजिस्टर करने के लिए ऑनलाइन आवेदन अनिवार्य है, और इसके बाद 30 दिनों के भीतर आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार करने की प्रक्रिया पूरी करनी होती है, जिससे संबंधित जोड़े को कानूनी मान्यता प्राप्त होती है।
यदि कोई जोड़ा लिव-इन-रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन नहीं कराता है, तो उन्हें कानूनी परिणामों का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें उन्हें 6 महीने की जेल या 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों शामिल हो सकते हैं। बताते चले कि सरकारी नियमों के अनुसार, लिव-इन में रहने वाले हर व्यक्ति को यूसीसी की वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करना आवश्यक होगा।
साथ ही पंजीकरण करने के बाद ही, रजिस्ट्रार द्वारा एक आधिकारिक रसीद दी जाएगी। यह रसीद उनके लिए एक आवश्यक दस्तावेज होगी, जिससे वह जोड़ा किराये के घर, हॉस्टल या पीजी में महिला मित्र के साथ रहने के लिए अधिकृत माना जाएगा। नियमों के अनुसार, पंजीकरण करने वाले जोड़े की जानकारी रजिस्ट्रार द्वारा उनके माता-पिता या अभिभावक को सूचित की जाएगी।
वहीं अब लिव-इन में जन्म लेने वाले बच्चों की स्थिति को स्पष्ट करते हुए, यह व्यवस्था की गई है कि उन्हें उसी जोड़े की वैध संतान माना जाएगा। नगर आयुक्त या रजिस्ट्रार शहरी क्षेत्र में यूसीसी के तहत लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता देने के लिए अधिकृत हैं। और ग्रामीण इलाकों में लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता देने का काम एसडीएम को सौंपा गया है। 27 जनवरी को उत्तराखंड में यूसीसी को लागू कर दिया गया था। जिसमें अब रजिस्ट्रेशन करना महत्वपूर्ण हो गया है।