डॉ. पूरन सिंह सिजवाली अभी हैदराबाद में वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हैं.अल्मोड़ा के पनौली गांव रहने वाले डॉ. पूरन सिंह सिजवाली का जीवन भी पहाड़ के अन्य घरों जैसा ही है.जहां कमाई कम और खर्चा ज्यादा है.इसके साथ ही पिता की मृत्यु के बाद सारी जिम्मेदारी बड़े भाई को ही उठानी पड़ती है. डॉ पूरन सिंह सिजवाली के पिता स्वर्गीय दीवान सिंह सिजवाली भारतीय सेना का हिस्सा रहे थे.जब वह कक्षा तीन में पढ़ते थे तो उनके पिता रिटायर हो गए थे. वहीं राजेंद्र उस वक्त पैदा भी नहीं हुए थे. परिवार में कुल 6 भाई बहन हैं. दो भाई और चार बहनें हैं.
90 के दशक में सेना की पेंशन से घर चलाना कोई आसान बात नही थी. लेकिन सब परेशानियों को पीछे छोड़ते हुए डॉ पूरन सिंह सिजवाली ने अपनी पढ़ाई पूरी की.अल्मोड़ा से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया. उसके बाद पंतनगर में उन्हें प्रवेश मिला और बायोटेक्नोलॉजी से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने जेएनयू से पीएचडी की. तदोपरांत साल 1999 में वह अमेरिका चले गए.
इसके बाद राजेंद्र सिंह सिजवाली ने भी अपने भाई के परिश्रम को देखते हुए उसी राह पर चलने का निर्णय लिया. राजेंद्र बचपन से ही मेधावी छात्र रहे हैं.स्कूल की पढ़ाई पूरी हुई तो उन्होंने द्वाराहाट के इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक किया. राजेंद्र सिजवाली साल 2005 से इसरो में है.
चंद्रयान 3 के विक्रम लैंडर के लिए प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर रहते हुए उन्होंने सेंसर के लिए पावर सिस्टम को विकसित करने में प्रमुख योगदान दिया. डॉ.पूरन सिंह सिजवाली बताते हैं कि उनके छोटे भाई राजेंद्र सिंह सिजवाली ने घर की आर्थिक स्थिति को देखा था. लेकिन इतने अभावों के बावजूद भी उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी. और अपने सपनों के बीच में कभी भी इन चीजों को नहीं आने दिया.
आज इसी कारण उनका भाई उन वैज्ञानिकों में शामिल है जिन्होंने देश को अंतरिक्ष में ऐतिहासिक कामयाबी दिलाई है.प्राप्त जानकारी के अनुसार राजेंद्र सिंह सिजवाली के मिशन चंद्रयान में शामिल होने के बारे में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने भी सोशल मीडिया पर जानकारी साझा की.