
उत्तराखंड में हर वर्ष गर्मियों में पहाड़ों में लगने वाली आग का कारण चीड़ के पेड़ हैं. यह पेड़ देखने में जितने खूबसूरत लगते हैं उससे कई ज्यादा यह उत्तराखंड के जंगलों के लिए नुकसानदायक भी हैं. उत्तराखंड में पिरुल के नाम से जाने जाने वाली चीड़ के पेड़ की पत्तियां काफी जल्दी आग पकड़ लेती है. जिसके कारण उत्तराखंड हर साल पेड़ों के भारी नुकसान को झेलता है. लेकिन जैसे की हीरे की परख जोहरी को होती है, वैसे ही एक पारखी की नजर सरयू ने चीड़ की उपयोगिता को पहचाना है.
आपको पता दें सरयू नागपुर के महाराष्ट्र के रहने वाली है.जिन्होंने अपने हुनर और दृढ़ इच्छा शक्ति के दम पर पर्यावरण के लिए घातक इस चीड़ की पत्तियों (पिरूल) को बहुत कीमती बना दिया है.सरयू उत्तराखंड के चंपावत जिले में रहती है और वहां पर पिरूल से बहुत ही उपयोगी वस्तुएं बनाती हैं. जिनकी कीमत बाजार में 3 हजार रुपए तक होती है. आपको बता दें कि पिरुल से बने उत्पादों की मांग केवल स्थानीय बाजारों में ही नहीं बल्कि महानगरों में भी है. सरयू लगभग 3 वर्षों से इस कार्य में जुड़ी हुई है.उन्होंने 80 से ज्यादा महिलाओं को प्रशिक्षित करके उन्हें स्वरोजगार से जोड़ा है.
यह महिलाएं पिरुल से प्रदूषण मुक्त उत्पाद बनाकर उन्हें सीधे बाजार में बेच रही हैं.चीड़ की पत्तियों से निकलने वाले पिरूल से विभिन्न डिजाइन वाली टोकरी, टेबल मैट, बैग, सर्विंग ट्रे, हाटकेस, टोपी, टी कोस्टर, झुमके, नेकलेस, राखी आदि बनाए जाते हैं.सामग्री में पिरूल के साथ धागा व चमक के लिए पालिश भी इस्तेमाल होती है. आपको बता दें की सरयू का पूरा नाम सर्वरी पोहरकर है और वे नागपुर महाराष्ट्र की रहने वाली है. सरयू यानी कि शर्वरी जो की टैक्सटाइल डिजाइनर है अपनी बड़ी बहन के साथ 2020 में चंपावत आई थी.वे भारतीय स्टेट बैंक की फैलोशिप पर ग्रामीण विकास संबंधी अध्ययन के लिए यहां आई थीं.
यहां अध्ययन करते हुए उन्हें पता चला कि जंगल में आग लगने का सबसे मुख्य कारण पीरुल के पत्ते ही है, जिसके कारण खेती भी प्रभावित होती है. उन्होंने समस्या के समाधान के लिए पिरुल से उत्पाद बनाने शुरू किए.इसके बाद जब उनका काम चल पड़ा तो उन्होंने पिरूल हैंडी क्राफ्ट नाम से अपनी संस्था को पंजीकृत करवाया. तदोपरांत उन्होंने हैंडमेड उत्पादों की बिक्री शुरू कर दी. अब सरयू पहाड़ की महिलाओं के साथ मिलकर अपने पिरुल उत्पादों का व्यवसाय कर रही है.
सरयू चंपावत जिले के खेतीखान में रह रही हैं और खेतीखान, लोहाघाट, पाटन, पाटी और पिथौरागढ़ के झूलाघाट में अभी तक 80 महिलाओं को प्रशिक्षित कर चुकी हैं. आपको बता दें कि यह महिलाएं जंगल से पिरुल बटोरने और उससे उत्पाद बनाने तक का सारा काम करती है और जब उत्पादों की बिक्री हो जाती है तो उसके बाद महिलाओं को उनका महनताना भी दिया जाता है. प्राप्त जानकारी के अनुसार लोहाघाट में बहुउद्देश्यीय शिविर में सरयू ने पिरूल उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई थी.
मनोज तिवारी जो की नैनीताल हाई कोर्ट के वरिष्ठ न्यायमूर्ति हैं, उनका यह कौशल देखकर काफी प्रभावित हुए थे. उनके शब्द इस प्रकार थे कि समाज में कौशल ही बदलाव लाता है.डीएफओ आरसी कांडपाल ने उनके इस कौशल की तारीफ करते हुए कहा कि पिरूल के उत्पाद बनाने से महिलाओं की घर के काम के साथ ही नियमित आय भी हो रही है. साथ ही साथ पर्यावरण संरक्षण में भी सहायता मिल रही है. आपको बता दें कि वन विभाग की जायका योजना से भी इसमें सहायता प्रदान की जा रही है.