एक अध्यापक ऐसे भी: विदेशों मे हिंदी का ज्ञान बांट रहे है गढ़वाल के रामप्रसाद भट्ट, कई देशों के छात्रों को पढ़ाया

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Videsho me hindi ka gyaan baant rahe he tehri Garhwal ke Ramprasad bhatt

प्रोफेसर रामप्रसाद भट्ट टिहरी जिले के रहने वाले हैं जो जर्मनी की हैंबर्ग यूनिवर्सिटी में हिंदी के प्रोफेसर हैं। वो विदेश में ‘हिंदी गहन अध्ययन’ नाम से विशेष कार्यक्रम चला रहे हैं।हिंदी हमरी मात्र भाषा है, ये हमे बचपन से बताया जाता है और विश्व आर्थिक मंच के अनुसार हिंदी विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है।भारत में ही नहीं बल्कि विश्‍व के सैंकड़ों व‍िश्‍वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। प्रोफेसर रामप्रसाद भट्ट जो की मूलरूप से टिहरी जिले के रहने वाले हैं। प्रोफेसर रामप्रसाद भट्ट जर्मनी की हैंबर्ग यूनिवर्सिटी में हिंदी के प्रोफेसर हैं। वो विदेश में अपनी हुनर विदेशों के बच्चों को भी सीखा रहे हैं। ‘हिंदी गहन अध्ययन’ नाम से विशेष कार्यक्रम चला रहे हैं।

प्रोफेसर भट्ट 14 साल से पोलैंड, नीदरलैंड, इटली और डेनमार्क समेत कई यूरोपियन देशों के 673 छात्रों को हिंदी भाषा पढ़ा चुके हैं। हिंदी भाषा से हम सबको प्यार है, लेकिन इसे सहेजने और मातृभाषा के प्रसार के लिए प्रोफेसर रामप्रसाद भट्ट जो कार्य कर रहे हैं, वो सराहनीय है और काफी अच्छी बात है कि वो हमरी मात्र भाषा को विदेशों में भी उजागर करके हिंदी भाषा को बढ़ावा दे रहे हैं। प्रो. भट्ट मूलरूप से टिहरी जिले के भल्डगांव बासर के रहने वाले हैं। हिंदी साहित्य से उन्हें विशेष लगाव है और रुचि रही है। वो स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई के दौरान वो हिंदी में साहित्य लिखा करते थे।उनकी शिक्षा उनके गांव में ही हुई और इंटर के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई श्रीनगर से की है।

प्रो. भट्ट ने श्रीनगर से हिंदी विषय में पीएचडी की है और वो देहरादून में पढ़ाते थे फिर बाद में वो जर्मनी चले गए। आज प्रो. भट्ट विदेशी छात्रों को हिंदी पढ़ा रहे हैं। प्रो. रामप्रसाद भट्ट यूरोपियन देशों के छात्रों के लिए हर साल अगस्त में विशेष कोर्स का संचालन करते हैं, जिसका नाम ‘हिंदी गहन अध्ययन’ है। जर्मनी में वो हिंदी के एकमात्र ऐसे शिक्षक हैं, जो इस तरह का कोर्स संचालित कर रहे हैं। छात्रों में इस कोर्स को करने के लिए होड़ लगी रहती है। प्रो. रामप्रसाद की कोशिशों से विदेशों में हिंदी भाषा का बहुत अच्छे से प्रचार-प्रसार हो रहा है और पहाड़ के इस होनहार बाज पर आज हर क्षेत्रवासी को गर्व है। गांव में लोग उन्हें डॉ. जर्मन नाम से जानते हैं।यह काफी अच्छी बात है कि हमरे उत्तराखंड से भी ऐसे – ऐसे हुनर बाज निकल रहे है जो अपने राज्य और अपने देश का नाम रोशन कर रहे हैं।

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