भीम का वध करने जा रहे थे धृतराष्ट्र लेकिन वासुदेव श्री कृष्ण ने यह कहकर बचाई भीम की जान…

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देश में लगे लॉकडाउन के दौरान डीडी भारती पर महाभारत सीरियल का पुनः प्रसारण किया गया और सभी लोगो ने इस सीरियल को दुबारा से उतना ही प्यार दिया जसे की आप सभी ने देखा कि अधर्म पर धर्म की जीत का यह सीरियल प्रतीक है जब दुर्योधन ने जुए में कपट से पांडवो को हराकर उनका राज्य हड़प लिया और उनको वनवास भेज देता है लेकिन जब वे वनवास और अज्ञातवास को पूरा करते है तो दुर्योधन से अंतिम में 5 गांव मांगते है जिससे की ये महाभारत का युद्ध ना हो लेकिन दुर्योधन 5 गांव देने से भी इंकार कर देता है और कहता है की में पांडवो को 5 गांव तो बहुत दूर सुई की नोक बराबर भी जमीन नहीं दूंगा उसके बाद महाभारत का युद्ध आरंब होता है और एक एक करके दुरोधन के सभी भाई मारे जाते है

परन्तु अंतिम में दुर्योधन बचा रहता हे तब दुर्योधन अपनी माता गांधारी के पास विजय श्री का आशीर्वाद लेने के लिए जाता है लेकिन दुर्योधन की माता उसको विजय श्री का आशीर्वाद देने से इंकार कर देते हे लेकिन उसको ये कहती है की तुम प्रातः काल तुम मेरे सामने आना लेकिन मेरे सामने तुम उस अवस्था में आना जैसे तुमने जन्म लिया था अर्थात नग्न परन्तु जब प्रातः काल दुर्योधन माता के सामने जा रहे होते हे तो वासुदेव उनको बोलते है की तुम अब बालक थोड़ी ना हो जो अपनी माता के समक्ष ऐसी अवस्था में जाओगे तब दुर्योधन पेड़ के पते को लपेटकर माता के समक्ष जाता है तब माता गांधारी अपनी आंखो से पटी हटाकर उसके पूरे शरीर को वज्र का बना देती है लेकिन दुर्योधन का को भाग रह जाता है जहां वो पेड़ के पत्ते को लपेटकर गया था अब अंत में भीम और दुर्योधन के बीच गदा युद्ध होता है लेकिन दुर्योधन का शरीर तो वज्र का बन चुका है जिससे उस के शरीर पर भीम के वार का कोई प्रभाव नहीं होता तब वासुदेव कृष्ण भीम को उसकी प्रतिज्ञा याद दिलाते है और भीम दुर्योधन को जांघ पर वार करता है क्युकी दुर्योधन का वहीं भाग वज्र का नहीं हो पाया था और अंत में भीम दुर्योधन का वध करता है और पांडव महाभारत का युद्ध जीत जाते है

भीम का वध करने जा रहे थे धृतराष्ट्र लेकिन वासुदेव ने बचाए भीम के प्राण

पांडव युद्ध जीतने के बाद अपने जेस्ट पिता श्री धृतराष्ट्र से मिलने के लिए जाते है उनके साथ वासुदेव श्री कृष्ण भी होते हे जब पांचों भाई पांडव वासुदेव कृष्ण के साथ जेस्ट पिता श्री धृतराष्ट्र से मिलने जाते है तब द्वार पर उनकी मुलाकात महात्मा विदुर से होती है और विदुर उनका स्वागत करते है और तब युधिष्ठिर अपने चाचा विदुर से कहते है कि वे उन्हें आशी्वाद नहीं देंगे तब विदुर युधिष्ठिर से कहते है कि पहले भीतर चल कर अपने जेस्ट पिता श्री से आशीर्वाद ले लो तब मुझसे लेना मेरे चरण कहां भागे जा रहे है पुत्र तब महात्मा विदुर उनको धृतराष्ट्र के कक्ष में लेे जाते है और सबसे पहले धृतराष्ट्र से वासुदेव श्री कृष्ण मिलने के लिए जाते हैं और तब धृतराष्ट्र उनसे कहते है कि टूटे हुए इस वृक्ष की छाया में आपका स्वागत है वशुदेव और फिर श्री कृष्ण उनको प्रमाण करते है उसके बाद सम्राट युधिष्ठिर धृतराष्ट्र से मिलने जाते है और अपने जेस्ट पिता श्री के चरण स्पर्श करते है उसके बाद धृतराष्ट्र भीम को बुलाते है और कहते है कि पुत्र भीम मेरे निकट आओ पुत्र मेरे गले लग जाओ तब श्री कृष्ण भीम को इशारा में रोक लेते है और मना करते हुए उनके पुतले को इशारों में ही महाराज के समक्ष रखने को बोलते है तब भीम अपने पुतले को धृतराष्ट्र के समक्ष रखते है और पहले अपने जेस्ट पिता श्री के पैर स्पर्श करते है लेकिन जब गलें लगने के लिए जाते है तब श्री कृष्ण उनके पुतले को गले लगाने के लिए बोलते हैं और धृतराष्ट्र अपने हाथो से पुतले को गले लगा कर तोड़ देते हैं जिसके बाद धृतराष्ट्र बहुत रोते है और कहते है कि है प्रिया अनुज पांडु मुझें क्षमा कर देना मैंने तुम्हारे पुत्र भीम की हत्या कर दी हैं तब श्री कृष्ण कहते है की तुमने भीम की हत्या नहीं करी हे बल्कि भीम के पुतले को तोड़ा है उसके बाद धृतराष्ट्र माफी मांगते हुए सभी भाईयो को अपने गले से लगा लेते है इस प्रकार भगवान श्री कष्ण ने कुंती पुत्र भीम की जान बचाई उनके जेस्ट पिता धृतराष्ट्र से

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